जब एक खेत में
बीज बोये जाते है तो सब-के-सब एक-से नहीं उगते।
होता प्राय: इस प्रकार है-कुछ बीच रास्ते पर गिर जाते है और पंछी आकर उन्हें चुग
जाते है। कुछ पथरीली धरती पर गिरते है और अगर्चे वे उगते तो है, लेकिन थोड़े
ही समय के लिए उगते है, क्योंकि उनके आसपास इतनी मिट्टी नहीं होती कि उसमें
वह अपनी जड़ों को जमा लें और इसलिए उनके अंकुर जल्दी ही सूख जाते है। कुछ बीज
कांटों पर गिरते है और कांटे उन्हें दबा लेते है। लेकिन कुछ ऐसे भी होते है, जो अच्छी
जमीन पर गिरते है, पैदा होकर बड़े हो जाते है और एक-एक दाने से तीस या साठ दाने फलते है।
यही दशा आदमियों की है। कुछ
ऐसे है, जो अपने दिलों में ‘स्वर्ग का राज्य’ प्राप्त नहीं करते, उन्हें बाहरी प्रलोभन आ घेरते है और जो बोया था, उसे चुरा लेते है। ये वे बीज है, जो
रास्ते पर बोये गए थे। इनके बाद वे आदमी है, जो
पहले तो खुशी-खुशी उपदेशों को स्वीकार करते है,
लेकिन जब उनका अपमान होता है और उसके लिए उन्हें पीड़ा दी जाती है, तो वे उससे विमुख हो जाते है। ये वे बीज है, जो
पथरीली ज़मीन पर बोये गए थे। इसके बाद वे लोग है, जो ‘स्वर्ग के राज्य’ के अर्थ समझते है, लेकिन उनके भीतर का संसारी मोह और संपत्ति का लोभ उन्हें दबा लेता है। ये
वे बीज है, जो कांटों में बोये गए
थे। लेकिन वे बीज, जो अच्छी धरती पर बोये गए
थे, वे है, जो ‘स्वर्ग के राज्य’ के अर्थ समझते है और उसे
अपने दिलों में जगह देते है। ये लोग फूलते-फूलते है, कुछ
तो तीस गुना और कुछ साठ गुना और कुछ सौ गुना।
मतलब यह कि जिसे जो दिया गया था, उसने
वह संभाल रखा है, तो उसे और भी ज्यादा
मिलेगा, लेकिन उस व्यक्ति से
सबकुछ छीन लिया जायगा, जिसने दिये हुए को संभाल
कर नहीं रखा। इसलिए ‘स्वर्ग के राज्य’ में प्रवेश करने के लिए अपनी सारी शक्ति के साथ यत्न करो। अगर आप उसमें
प्रविष्ट हो सकते है, तो और किसी भी बात के लिए
इच्छा मत करो।
उस आदमी की तरह काम करो, जिसे, जब यह पता चल गया कि अमुक खेत में बड़ा भारी खजाना दबा पड़ा है, तो उसने जो-कुछ उसके पास था सब बेचकर उस खेत को खरीद लिया और अमीर बन गया।
आपको भी वैसा ही करना चाहिए।
सदा याद रखो कि जिस प्रकार एक छोटा-सा बीज बढ़कर एक बड़ा पेड़ हो
जाता है, उसी तरह ‘स्वर्ग के राज्य’ के लिए थोड़े-से यत्न का
बहुत बड़ा परिणाम मिलता है।
हर कोई अपने निजी यत्न से ‘स्वर्ग
का राज्य’ प्राप्त कर सकता है, क्योंकि वह आपके भीतर विद्यमान है।
...स्वर्ग का राज्य हमारे भीतर है, इसका अर्थ यह है कि उसमें प्रविष्ट होने
के लिए हमें फिर से जन्म लेना होगा। फिर से जन्म लेने का मतल यह नहीं कि जिस
प्रकार एक हाड़-मांस का बच्चा अपनी मां के गर्भ से जन्म लेता है, उसी तरह जन्म लिया जाय, बल्कि इसका मतलब यह है कि
उस शक्ति का उदय हो जाय। शक्ति के उदय होने का अर्थ यह समझ लेना है कि मनुष्य में
परमात्मा की शक्ति का वास है। जिस प्रकार प्रत्येक मनुष्य अपनी माता के गर्भ से
जन्म लेता है, उसी प्रकार परमात्मा की
शक्ति से भी जन्म लेता है। जो-कुछ शरीर से जन्मता है, वह
शरीर का ही अंश है। उसे यातना अनुभव होती है और मरता भी है। जो-कुछ शक्ति में से
जन्मता है, वह शक्ति का अंश होता है।
और वह जीवित रहता है। न तो उसे यातना हो सकती है और न वह मरता है।परमात्मा ने मनुष्यों में अपनी शक्ति इसलिए उत्पन्न
नहीं की कि वे पीड़ित हों और मर जायं,
बल्कि इसलिए कि उनका जीवन सुखद और चिरस्थायी हो।
प्रत्येक मनुष्य उस जीवन को प्राप्त कर सकता है। ऐसी जीवन ‘स्वर्ग का
राज्य’ है।
इसलिए ‘स्वर्ग का राज्य’ का यह अर्थ नहीं समझना चाहिए कि
किसी समय-विशेष और स्थान-विशेष में हर किसी के लिए ‘प्रभु के राज्य’ का उदय
होगा, बल्कि यह कि यदि लोग अपने अन्दर की परमात्मा की शक्ति को जान लेंगे और
उसके अनुसार आचरण करेंगे, तभी वे ‘स्वर्ग के राज्य’ में प्रविष्ट होंगे और उन्हें यातना अथवा मृत्यु
सहन नहीं करनी होगी। लेकिन अगर लोग अपने अन्दर की शक्ति का अनुभव नहीं करते और
अपने शरीरों के लिए ही जीते है, तब वे यातना सहेंगे और मरेंगे।
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